राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर मंजूरी के मामले पर फैसला

सुको ने कहा अदालत राज्यपाल की भूमिका को टेकओवर नहीं कर सकती
नई दिल्ली। राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर मंजूरी की समयसीमा तय के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चली लंबी सुनवाई के बाद आज फैसला सामने आ गया है। सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि अदालत राज्यपाल की भूमिका को टेकओवर नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि समय-सीमा लागू करना संविधान द्वारा इतनी सावधानी से संरक्षित इस लचीलेपन के बिल्कुल विपरीत होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सीजेआई ने फ़ैसला पढ़ते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से राष्ट्रपति संदर्भ के पक्ष में दी गई दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दर्ज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला, अदालत राज्यपाल की भूमिका को टेकओवर नहीं कर सकती। अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल या तो विधेयक पर अपनी सहमति दे सकते हैं, विधेयक को रोककर वापस कर सकते हैं या विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई चौथा विकल्प नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्यपाल राज्य विधेयकों पर अनिश्चित काल तक रोक नहीं लगा सकते, लेकिन उसने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा निर्धारित करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करना शक्तियों के पृथक्करण के विरुद्ध होगा।
समय-सीमा लागू करना लचीलेपन के बिल्कुल विपरीत होगा- सुप्रीम कोर्ट
सीजेआई ने कहा कि समय-सीमा लागू करना संविधान द्वारा इतनी सावधानी से संरक्षित इस लचीलेपन के बिल्कुल विपरीत होगा। मान्य सहमति की अवधारणा यह मानती है कि एक प्राधिकारी अर्थात न्यायालय किसी अन्य प्राधिकारी के स्थान पर एक और भूमिका नहीं निभा सकता है। राज्यपाल या राष्ट्रपति की राज्यपालीय शक्तियों का हड़पना संविधान की भावना और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत है। न्यायालय द्वारा मान्य सहमति की अवधारणा किसी अन्य प्राधिकारी की शक्तियों का अधिग्रहण है और इसके लिए अनुच्छेद 142 का उपयोग नहीं किया जा सकता।
न्यायिक समीक्षा-जांच केवल तभी जब विधेयक कानून बन जाए
सीजेआई ने कहा कि इसलिए हमें इस न्यायालय के पूर्व उदाहरणों से विचलित होने का कोई कारण नहीं दिखता। अनुच्छेद 200 और 201 के तहत कार्यों का निर्वहन राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा न्यायोचित है। न्यायिक समीक्षा और जांच केवल तभी हो सकती है जब विधेयक कानून बन जाए। यह सुझाव देना अकल्पनीय है कि राष्ट्रपति द्वारा सलाहकार क्षेत्राधिकार के तहत निर्दिष्ट अनुच्छेद 143 के तहत राय देने के बजाय विधेयकों को न्यायालय में लाया जा सकता है। राष्ट्रपति को हर बार जब विधेयक उनके पास भेजे जाते हैं तो उन्हें इस न्यायालय से सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सलाहकार क्षेत्राधिकार के विकल्प की आवश्यकता है, तो यह हमेशा उपलब्ध है।



