संयम की राह पर चला रायपुर का दंपती, 13 वर्षीय बालक ने भी लिया कठोर निर्णय

सांसारिक मोह-माया त्याग कर दीक्षा की ओर बढ़ा संखलेचा परिवार
धमतरी (प्रखर)छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से एक प्रेरणादायी और दुर्लभ उदाहरण सामने आया है, जहाँ एक पूरे परिवार ने सांसारिक जीवन की चकाचौंध छोड़कर संयम और त्याग के मार्ग को अपनाने का संकल्प लिया है। रायपुर सदर बाजार निवासी संखलेचा परिवार ने यह निर्णय लेकर न केवल समाज को चौंकाया है, बल्कि आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने की नई प्रेरणा भी दी है। विशेष बात यह है कि दंपती के साथ उनका मात्र 13 वर्षीय पुत्र भी संयम की राह पर चलने को तैयार है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, रायपुर निवासी शैलेन्द्र संखलेचा (52 वर्ष) ने बताया कि वे कई वर्षों से कपड़ा व्यवसाय से जुड़े हुए थे और सांसारिक जीवन में पूरी तरह रमे हुए थे, लेकिन भीतर से उन्हें मानसिक शांति और आत्मसंतोष की कमी महसूस हो रही थी। उन्होंने बताया कि झूठ, कपट, छल, चोरी और स्वार्थ से भरे इस भौतिक जीवन से मन ऊब चुका था। इसी आत्ममंथन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी एकता संखलेचा के साथ संयम का मार्ग अपनाने का निर्णय लिया।
शैलेन्द्र संखलेचा ने बताया कि आगामी फरवरी माह में मुंबई में आयोजित दीक्षा समारोह में वे अपनी पत्नी सहित आचार्य श्रीमंत विनय योग सूरीश्वर तिलक जी मसा से दीक्षा ग्रहण करेंगे। उन्होंने कहा कि बीते 5–6 वर्षों से उनके मन में यह विचार चल रहा था, लेकिन गुरुओं के सान्निध्य में रहने के बाद उनके विचारों को दिशा मिली और निर्णय दृढ़ हुआ।
संखलेचा परिवार के इस निर्णय से उनके परिजन और समाज के लोग भी भावुक हैं। शैलेन्द्र संखलेचा ने बताया कि उनके परिवार में एक पुत्र वर्तमान में व्यापार संभाल रहा है, जबकि उनकी पुत्री पहले ही दीक्षा लेकर साध्वी जीवन अपना चुकी है। गुरुकुलवास के दौरान गुरु महाराज के सान्निध्य ने पूरे परिवार के जीवन को बदल दिया।
दंपती की इस आध्यात्मिक यात्रा से प्रेरित होकर उनके 13 वर्षीय पुत्र तनिष सोनिया ने भी संयम मार्ग अपनाने का संकल्प लिया है। इतनी कम उम्र में लिया गया यह निर्णय समाज के लिए आश्चर्य और प्रेरणा दोनों का विषय बना हुआ है। तनिष ने चर्चा के दौरान बताया कि उन्होंने कक्षा छठवीं तक पढ़ाई की है और वे कई बार गुरुजनों के सान्निध्य में रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनका अधिक समय मोबाइल और टीवी देखने में बीतता था, लेकिन जब वे गुरुकुलवास में रहे, तब उनका मन पूरी तरह बदल गया।
तनिष ने बताया कि गुरुकुलवास के दौरान वे कभी 6 महीने, कभी 2 महीने और कभी 4 महीने तक आश्रम में रहे। वहीं रहकर उन्होंने साधुओं का जीवन देखा और समझा। तभी उनके मन में यह भावना जागी कि सांसारिक जीवन छोड़कर साधु जीवन अपनाया जाए। वर्तमान में उन्होंने रात्रि भोजन, बाहर का खाना और कई सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर दिया है।
संखलेचा दंपती ने समाज को संदेश देते हुए कहा कि जीवन अनमोल है और इसकी वास्तविक कीमत संयम, त्याग और सदाचार में है। उन्होंने कहा कि गुरुजनों के सान्निध्य में रहकर जीवन जीने से आत्मशांति प्राप्त होती है और किसी को कष्ट न पहुँचाना ही सच्चा धर्म है।
संखलेचा परिवार का यह निर्णय आज के भौतिकवादी युग में संयम, त्याग और आध्यात्मिक चेतना का अनुकरणीय उदाहरण बनकर उभरा है। समाज में इस निर्णय की व्यापक चर्चा हो रही है और लोग इसे प्रेरणास्रोत के रूप में देख रहे हैं।



