मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर की जमानत याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा- यह संगठित आर्थिक अपराध
मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर की जमानत याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा- यह संगठित आर्थिक अपराध
बिलासपुर. हाईकोर्ट ने सीजीएमएससी में रीएजेंट खरीदी में हुए करोड़ों के घोटाले के आरोपी व मास्टर माइंड मोक्षित कारपोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, याचिकाकर्ता द्बारा किए गए कृत्य न केवल गंभीर आर्थिक अपराध है, बल्कि बड़े पैमाने पर समाज कल्याण के खिलाफ भी अपराध है। ईओडब्ल्यू व एसीबी ने उसके खिलाफ जुर्म दर्ज किया है। मामला प्रदेश में मेडिकल इक्यूपमेंट सप्लाई में गड़बड़ी का है।
दरअसल, सीजीएमएससी रीएजेंट घोटाले की जांच कर रहे EOW ने 341 करोड़ के रीएजेंट घोटाले में संलिप्त 6 तकनीकी अधिकारी व विभागीय अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए स्पेशल कोर्ट में चालान पेश किया है। इन पर गंभीर आरोप है। मोक्षित कारपोरेशन ने निविदा हथियाने के लिए घुसखोर तकनीकी अधिकारियों को पहले अपने पक्ष में किया और फिर पर्चेस आर्डर का 0.2 से 0.5 प्रतिशत बतौर कमीशन रिश्वत भी दिया। मोक्षित कार्पोरेशन ने कुछ दूसरी कम्पनियों से मिलकर पूल टेंडरिग की। दूसरी कम्पनियों के दाम अधिक थे, कम दाम होने पर मोक्षित को ठेका दे दिया गया। इसके बाद मोक्षित ने काफी ज्यादा दामों पर सप्लाई की।
8 रूपये में आने वाली क्रीम 23 रूपये में बेचीं गई। रीएजेंट और ट्रीटमेंट मशीनों के दाम भी बहुत अधिक थे। मशीन को हर जगह स्थापित करना था, मगर ऐसा नहीं किया गया। जिस जगह मशीनें स्थापित की गईं, वहां भी इन्हें अचानक लॉक कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि शासन को करीब 400 करोड़ का घाटा हुआ है। इस दौरान 95 लाख के रीएजेंट ही बर्बाद हुए थे।
इस मामले में ईओडब्ल्यू और एसीबी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 409 एवं 120 बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ए, 13(2) एवं 7(सी) के तहत अपराध दर्ज किया। कई सरकारी अफसरों को भी गिरफ्तार किया गया, जो इसमें शामिल रहे। शशांक चोपड़ा को गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश पर जेल भेज दिया गया। उसने अपनी जमानत के लिए याचिका पेश की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिगल बेंच में सुनवाई हुई। सुनवाई उपरांत कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जमानत आवेदन को खारिज किया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला अस्पताल आदि में कोई भी व्यक्ति भर्ती नहीं हो पा रहा है, जो राज्य के लोगों के लिए सीधा नुकसान है। आवेदक द्बारा किए गए कृत्य न केवल गंभीर आर्थिक अपराध है, बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के कल्याण के खिलाफ भी अपराध है। इस स्तर पर आवेदक को जमानत देने से न केवल भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि समाज में एक बेहद हानिकारक संदेश जाएगा, जिससे न्याय वितरण प्रणाली में जनता का विश्वास कम होगा। यह न्यायालय इस बात पर विचार करता है कि आवेदक को जमानत पर रिहा करने के लिए यह उपयुक्त मामला नहीं है।