ज्योतिषी

समस्त की कुशलता के लिए रक्षा बंधन

प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था में ऋषि मुनियों के द्वारा अलग अलग तरीके, ऐसी ऐसी जीवन से संबंधित व्यवस्थाएं दी गई जिनके कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़ा रह सके और कुल वंश के लोग चाहे कोई कहीं भी कितनी ही दूर रहे आपसी बंधन बना रहे और इन संबंधों को किसी न किसी तरह मिठास का घोल मिलता रहे, जिस कारण कुटुम्ब संबंधियों के बीच संबंधों में मधुरता बनी रहे। और प्रत्येक व्यक्ति समय के अनुसार जीवन चक्र में फंसता चला जाता है और धीरे धीरे अपने कार्य, व्यापार, पत्नी बच्चे, परिवार में सिमटता चला जाता है। मात्र भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के लगभग ज्यादातर समाज व्यवस्थाओं में लड़कियां शादी के बाद अपने माता पिता के घर से विदा होकर अपने ससुराल चली जाती हैं। और कहीं कहीं सुसराल उनका कोसों और मीलों दूर भी हो सकता है। और उस लड़की के भाई भी अपने अपने कार्यों और परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में माता पिता के देहावसान के पश्चात भी भाई और बहन के बीच का रिश्ता सतत् बना रहे व इन रिश्तों में सदैव मिठास व व्यवहार बना रहे तथा लड़की और उसका परिवार कभी भी किसी परेशानी में हो तो उसके भाई अपने माता पिता के कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उसका साथ दे सकें, ताकि वह लड़की कभी भी अपने जन्म घर से स्वयं को पृथक न समझ सके। इसी कारण सनातन संस्कृति के चिंतक मनीषीजन रक्षाबंधन नामक त्यौहार की व्यवस्था किए और इस त्यौहार को रक्षाबंधन नाम प्रदान किया ताकि प्रत्येक भाई को अपनी बहनों के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध रहे।
इस त्यौहार के नाम से ही प्रतीत होता है कि यह त्यौहार रक्षा से संबंधित त्यौहार है। और दुनिया में सदैव के लिए जो आत्मिक बंधन है वह है प्रेम का अपनत्व का बंधन, और दुनिया में रक्षा पाने का सुरक्षित रहने का अधिकार समस्त को है। समस्त को सबसे बड़ी सुरक्षा जिससे चाहिए वो है कालचक्र जिसे समयचक्र भी कहा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि यह त्यौहार मात्र भाई और बहन का ही त्यौहार है, अगर ऐसा होता तो विप्रजन शासकों, क्षत्रियों और वैश्यों को क्यों रक्षा सूत्र बांधते? और सामान्य जन क्यों अपने आराध्य को रक्षा सूत्र बांधते क्या वे अपने आराध्य की बहने हैं और क्या विप्रजन शासकों, क्षत्रियों और वैश्यों की बहने हैं? नहीं, जो भी किसी को रक्षा सूत्र बांधे उनका कर्तव्य है कि पहले उन परमसत्य नाथ जी जो समस्त जगत को संरक्षण प्रदान करते हैं, जिस कारण उन्हें जगतपति भी कहा जाता है, को ध्यान कर व उनसे निवेदन प्रार्थना करे कि, हे नाथ जी मैं इन्हें आपके नाम से रक्षा सूत्र बांध रहा/रही हूं कृपा करके मेरी प्रार्थना की लाज रखें व इन्हें हर तरह के संकट से संरक्षित करें, इनके जीवन को समृद्धि प्रदान कर मंगलमय बनाएं, व इनके समस्त कर्म बंधनों को समाप्त कर भव सागर से इन्हें पार कर मोक्ष को प्रदान करें व जिन्हें रक्षा सूत्र बांधा जाए उनका भी दायित्व है कि वे जिनसे रक्षा सूत्र बंधना रहे हैं उनके प्रति भी नाथ जी से ऐसी ही भावना से प्रार्थना करें, ताकि इस त्यौहार के माध्यम से समस्त का कल्याण हो सके व सभी का उद्धार हो सके तभी इस रक्षा बंधन त्यौहार की सार्थकता होगी।
इस तरह यदि समस्त के कल्याण की भावना से यदि हम रक्षाबंधन के त्यौहार को स्वीकार करते हैं तो कोई जरूरी नहीं कि मात्र बहनें ही भाईयों को रक्षा सूत्र बांधेगी, अपितु एक भाई दूसरे भाई को, पिता पुत्र को, पुत्र पिता को, पति पत्नी को पत्नी पति को और कोई भी किसी को भी यहां तक कि किसी जड़ चेतन व अन्य जीव जन्तु तथा पशु पक्षीयों को भी इस कल्याण की भावना से रक्षा सूत्र बांधकर एक बहुत बड़ी आनुष्ठानिक आराधना सरलतापूर्वक खुशी मनाते हुए पूर्ण की जा सकती है और स्वयं के कल्याण व उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। अघोर पंथ के परम गुरु महाऔघड़ेश्वर बाबा श्री औघड़ नाथजी कर भी यही उपदेश है कि-
तुम किसी के लिए दुआ प्रार्थना करते को, तो यह जरूरी नहीं कि तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार हो और किसी का भला हो। किन्तु इससे तुम्हारा भला होना सुनिश्चित है। इसलिए सदैव समस्त के लिए सतत् प्रार्थनाशील होना ही चाहिए।

-सनातन संस्कृति के गूढ़ रहस्यों के उद्घाटन एवं उन्हें सरल रूप में जन सामान्य को प्रेषित करने का अलौकिक कार्य बाबा श्री औघड़नाथ जी के पवित्र सिद्ध स्थल भारत देश के छत्तीसगढ़ प्रांत अंतर्गत रायपुर शहर के श्रीधाम सुमेरू मठ औघड़नाथ दरबार में सम्पादित किया जा रहा है, जिसमें समस्त जनों का स्वागत है

  • प्रचंडवेग नाथ
    (पीठाधीश, श्रीधाम सुमेरू मठ, औघड़नाथ दरबार, रायपुर)
Author Desk

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