छत्तीसगढ़

पर्यूषण पर्व पर मन, वचन और काया को करें निर्मल, कम से कम हिंसा के साथ करें भोजन : साध्वी शुभंकरा श्रीजी

रायपुर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की षष्ठम प्रभात पर नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि पर्यूषण को सबसे श्रेष्ठ पर्व माना गया है। इसमें कम से कम पाप कर जीवन का निर्वाह करना बताया गया है। यह पर्व परमात्मा की आज्ञा का पालन करने का पर्व है। पर्यूषण हमें सिखाता है कि हमें कम से कम हिंसा के साथ भोजन करना है। पर्युषण पर्व जीवन शुद्धि का एक आध्यात्मिक शिविर होता है। इन आठ दिनों में हम अपने मन, वचन और काया को निर्मल करते हैं। अपनी चेतना को आध्यात्मिक दिशा देते हैं और धर्म के महान सिद्धांतों को जीवन में जीने की कोशिश करते हैं। इन आठ दिनों में अगर हम सच्चे मन से आराधना कर लेते हैं तो ये वर्ष भर का शुद्धिकरण कर सकते हैं। गलती किसी से भी हो सकती है, पर उसे स्वीकारना और सुधारना ही हमारे संस्कार होने चाहिए। जो गलती छिपाता है, वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता, पर जो गलती मिटाना जानता है वह उन गलतियों से मुक्त हो जाता है।

उन्होंने आगे कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए वेश का परिवर्तन करके संत बनना सरल होता है, पर स्वभाव सुधारकर संत बनना जीवन की महान साधना है। केवल ड्रेस और एड्रेस बदलने से व्यक्ति को साधना का निर्मल परिणाम नहीं मिल सकता जब तक की वह अपना नेचर नहीं बदल लेता। दियासलाई दूसरों को जलाने के लिए जलती है पर दुसरा जले या न जले पर खुद को तो जलना ही पड़ता है। ऐसे ही हमारा क्रोध और कषाय है जो दूसरों के बजाय हमें ज्यादा दुखी करता है। कषाय से आत्मा का पतन होता है। हमारा अंतरमन उजाले के बजाय अंधेरे में जाता है। जैसे जानवर के गले में डोरी डालकर चाहे जिस दिशा में खींचा जा सकता है वैसे ही कषायों के पास में बंधा हुआ इंसान क्रोध, मान, माया में घिरा रहता है। उन्होंने कहा कि अहंकार के कषाय से बाहर निकलना चाहिए। दुनिया में सब कुछ करना सरल है पर सरल होना मुश्किल है।

साध्वीजी कहती है कि लोग फैशन के पीछे दौड़ते रहते हैं। इस फैशन और मेकअप के चक्कर में ना जाने हम कितने जानवरों के साथ हिंसा करते हैं। लोगों को यह पता होता है कि जीव हिंसा के बाद ही कॉस्मेटिक्स और साज सज्जा के सामान बनाए जाते हैं। यह जानते हुए भी लोग कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है अगर हम उपयोग ना करें तो कोई दूसरा इन सामान का उपयोग तो करेगा ही और अगर हमने ऐसा किया तो भी कुछ नहीं होगा। ऐसे सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग करके जो व्यक्ति लोगों के सामने व्यक्तिव जमाता है, साधु-मुनि ऐसे व्यक्तियों से मिलना भी करना पसंद नहीं करते हैं।

साध्वीजी कहती है कि आप सभी काम करते हो, मनोरंजन करते हो, मनचाही जगह पर घूमते हो, मनपसंद खाना खाते हो, टीवी देखते हो, मोबाइल पर गेम खेलते हो, आराम करते हो, आप सब कुछ कर लेते हो। पर आप धर्म नहीं करना चाहते। सोचते तो पर आप करते कुछ भी नहीं हो। आप सारे मनोरंजन का काम करते हो और जहां धर्म की बात आ जाए, वहां आप एक सामायिक भी करना नहीं चाहते हो। उसके बाद भी आप मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखते हो। अब आपको स्वयं का मूल्यांकन करना है कि आप कहां खड़े हो। आखिरकार आप यह सोच लेते हो कि यह शरीर तो एक दिन मिट्टी में मिल ही जाना है तो क्यों ना हम आज अपने मनपसंद खाना खाएं, घूमे फिरे और मनोरंजन के सभी साधनों का उपयोग कर लें। इन सबके साथ आप थोड़ा काम भी करते हो और थक जाते हो फिर आराम भी करते हो। जबकि इस जीवन में आराम का कोई स्थान ही नहीं है। आपको दिन भर कुछ ना कुछ काम करना ही चाहिए।

Author Desk

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