छत्तीसगढ़

गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अद्भूत जीवन गाथा और कहानियां

धमतरी — ” सुधा बीज बोने से पहिले काल कूट पीना होगा । पहिन मौत का मुकुट, विश्व हित मानव को जीना होगा ।। “

ऐसे कान्तिकारी पक्तियों के लेखक युग पुरुष अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक वेद मूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी का आगमन दिनांक 23/12/1981 को सप्त ऋषियों तपोभूमि महानदी के उद्गम स्थल सिहावा क्षेत्र के धरा धाम नगरी में हुआ था, वे गायत्री शक्तिपीठ में मां गायत्री के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने आये थे, जिनका साक्षात दर्शन नगरी, सिहावा क्षेत्र के लोगों ने किया था। इस अवसर पर गायत्री यज्ञ मंत्र जाप सहित अन्य कार्यकम समपन्न हुआ था। पूज्य गुरुदेव धमतरी होते हुए नगरी पहुँचे थे, नगरी बस स्टैण्ड के पास उनका ऐतिहासिक स्वागत किया गया था, उनके विश्राम के लिए वन विश्राम गृह नगरी में व्यवस्था किया गया था , लेकिन पूज्य गुरूदेव वहां न जाकर सीधे नव निर्मित गायत्री मंदिर पहुंच कर मां गायत्री के पूजा अर्चना कर प्राण प्रतिष्ठा किये पश्चात उनका दिव्य उद्घोदन हुआ जिसे हजारों लोगों ने सुना व प्रभावित होकर सैकड़ो लोग गायत्री परिवार में शामिल हुए उस समय के मूर्धन्य व्यक्ति स्व. मदन लाल जी कश्यप स्व. नाथूराम जी देवांगन स्व.राम कुमार भक्त जी, स्व. मोतीलाल जी साहू, स्व. केशरी मल जी सोनी, हुलास राम जी देवांगन इत्यादि लोगों ने काफी गायत्री मां का प्रचार-प्रसार किया था।

पुज्य गुरूदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी इस युग के भागीरथ थे जिन्होनें गायत्री व मंत्र विद्या को घर-घर पहुंचाया उनके द्वारा प्रणित प्रचारित पोषित युग निर्माण योजना के प्रभाव का प्रमाण है कि विश्व के कई देशों में यह संस्था कर रही है। इनका प्रमुख उद्घोष था हम बदलेंगे, युग बदलेगा हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। देव संस्कृति के यज्ञ पिता गायत्री माता। धन बल जन बल बुद्धि अपार सदाचार बिन सब बेकार, इत्यादि उनका जन्म 20 सितम्बर 1911 में आवंल खेड़ा (आगरा जनपद) ग्राम में पं.रूप किशोर शर्मा व माता दान कुंवरी देवीजी के घर हुआ, मात्र पन्द्रह वर्ष की अवस्था में बसंत पंचमी के दिन हिमालय वासी दादा गुरुदेव स्वामी सर्वेसर्वानन्द जी से साक्षात्कार हुआ था तथा उनके निर्देष पर गायत्री मंत्र के 24-24 लाख के 24 गायत्री अनुष्ठान सम्पन्न किये व आजादी के लड़ाई में महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण कार्य किये। स्वतंत्रता आंदोलन में उन्हें श्रीराम मत्त जी के नाम से जाना जाता है, सन 1926 में उनके द्वारा अखण्ड दीपक प्रज्वलित किया जो आज तक निरंतर जल रहा है व 2026 में इस ज्योति को 100 वर्ष पूर्ण होने जा रहा है। जो कि ऐसा अखण्ड दीपक विश्व के इतिहास में कही देखने सुनने को नहीं मिलता है तथा सन् 1953 में प्रथम गायत्री मंदिर का निर्माण गायत्री तपोभूमि मथुरा में किया एवं वर्ष 1958 में विशाल 1008 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ कर गायत्री परिवार का बीजारोपण कर. व विज्ञान का प्रयोग शाला का निर्माण सप्त सरोवर गंगा नदी के किनारे हरिद्वार में किया। शांति कुंज हरिद्वार में जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण बारह महीने दिया जाता है एवं आज भी यह कम निरंतर चल रहा है । गुरूदेव आचार्य पं. श्रीराम शर्मा जी द्वारा भारत भर में चौबीस सौ गायत्री शक्तिपीठ का निर्माण कर स्वयं प्राण प्रतिष्ठा करने पहुंचे तथा चारों वेद, 108 उपनिषद, 6 दर्शन स्मृतियां 18 पुराणों के भाष्यकार, 3200 पुस्तकों के लेखन कर प्रतिबंधित गायत्री महायज्ञ को सर्व सुलभ करा दिया। इनके सम्पर्क में जो भी आया निहाल हो गया पूज्य गुरूदेव की कथा गाथा को कहना शब्दों में समेटना संभव नहीं है। इस युग पुरुष ने जन-जन तक गायत्री महामंत्र को पहुंचाया एवं गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए गायत्री जयंती के दिन ही 2 जून 1990 को स्वेच्छा से महाप्रयाण किया। ऐसे पूज्य गुरुदेव को नगरी आगमन पर शत् शत् नमन।

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