छत्तीसगढिय़ा क्रान्ति सेना ने खारुन बचाने राष्ट्रपति के नाम सौंपी गुहार की चिठ्ठी

हुंकार सभा के साथ पूर्ण हुई पांच दिवसीय पदयात्रा
रायपुर। पैंतालीस डिग्री तापमान और भरे नवतपे के बीच में छत्तीसगढिय़ा क्रान्ति सेना के तत्वावधान में सुंगेरा तथा अन्य हजारों तटवर्तीय ग्रामीणों ने पांच दिन पैदल चलते-चलते पांच जून विश्व पर्यावरण दिवस के दिन राजधानी कूच किया । पदयात्रियों में पांच सौ की संख्या तो सिर्फ महिलाओं की थी। रास्ते में पडऩे वाले गांवों के पंच सरपंचो एवं जन प्रतिनिधियों ने पद यात्रियों के रुकने एवं भोजन आदि के प्रबंध किया। खारुन बचाने की अदम्य जीजीविषा एवं कष्टप्रद यात्रा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है। छत्तीसगढ़ की नदियों की दुर्दशा से आज जनमानस को जगाने का काम इन आंदोलनकारी माताओं ने कर दिया है। जनता अब इस मामले में सरकार से सवाल करने लगी है यही इस आंदोलन की खूबी है। गुरुवार अंतिम दिन सरोना से रात्रि विश्राम कर निकली यात्रा डंगनिया, रायपुरा होते हुए महादेव घाट पहुंच कर सभा में तब्दील हो गई। सभा में सभी वक्ताओं के उद्बोधनों में मरती हुई खारुन दाई की पीड़ा का ही जिक्र रहा। बहुत लोगों ने पहली बार खारुन के बदबूदार और जहरीले पानी का सामना किया।
दो तीन दशक पहले तक सुजला-सुफला यह नदी लाखों लोगों को रोजगार और अन्नजल देती थी। आज इसका जलकुंभी युक्त पानी इंसान क्या पशु भी उपयोग नहीं कर सकता।
क्रान्ति सेना के अध्यक्ष डॉ. अजय यादव के नेतृत्व में हुए आंदोलन में अमित बघेल, लता राठौर, चंद्रकांत यदु, भूषण साहू, तारण दास साहू, ललित बघेल, सोनू राठौर, ऋचा वर्मा, उषा श्रीवास प्रमुख वक्ता रहे। इस संपूर्ण आंदोलन को एकमात्र राजनैतिक दल जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी एवं उसके अध्यक्ष अमित बघेल ने अपना समर्थन दिया एवं लगातार पांच दिन वे यात्रा में पैदल भी चले। हुंकार सभा के बाद स्थानीय प्रशासन को महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा गया। आखिर में संध्या होते ही हजारों लोगों ने एकसाथ मिल कर खारुन दाई की महा आरती की एवं संकल्प लिया की जबतक खारुन को साफ नहींं किया जाता तब तक वे सरकार और उद्योगों के खिलाफ आंदोलन करते रहेंगे।