छत्तीसगढ़

धर्म भावना की वृद्धि में आती अड़चन को पहचान कर दूर करें : प्रियदर्शी विजयजी

धर्म भावना की वृद्धि में आती अड़चन को पहचान कर दूर करें : प्रियदर्शी विजयजी

रायपुर। विवेकानंद नगर स्थित संभवनाथ जैन मंदिर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचन माला में जीवन में विशेषज्ञता हासिल करने का व्याख्यान जारी है। इसी कड़ी में रायपुर के कुलदीपक तपस्वी रत्न मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि बात शुभ भाव को बढ़ाने की चल रही है। उसके अंतर्गत शुभ निमित्तों का सेवन जितना ज्यादा होगा भाव वृद्धि उतनी ज्यादा होगी। जैसे किसी व्यक्ति को चलते-चलते अचानक चक्कर आने लगे हाफ जाए,पूरा शरीर पसीने से व्याप्त हो जाए, डॉक्टर के कहने पर सारे रिपोर्ट करवाया तब पता चला कोलेस्ट्रॉल लेवल हाई था,रक्त वाहिनियों में ब्लॉकेज ज्यादा होने से शरीर में उपरोक्त लक्षण दिखने लगे, जो कोलेस्ट्रॉल साइलेंट मोड पर था वह अब उग्र हो चुका था, जिसका असर शरीर पर दिख रहा था, इसी प्रकार हर बार शुभ निमित्त का सेवन आत्मा में वैराग्य की मात्रा बढ़ाता रहता है और जब वह मात्रा एक लेवल से आगे बढ़ जाती है तब उस वैराग्य का असर जीवन में दिखाई देता है। आज तक शुभ क्रिया करते-करते अब तक वह असर जीवन में नहीं दिख रहा था क्योंकि आज तक चाहिए उतनी धर्म भावना का पोषण हमने नहीं किया था।

घर के बगीचे में बीज होने के बाद खाद और पानी देते देते भी जब परिणाम नहीं मिलता तभी यह विचारना आवश्यक हो जाता है कि कहीं कुछ कमी रह गई है तो उस कमी को पहचान कर दूर करना चाहिए। इस तरह जीवन में भाव वृद्धि में आती अड़चन को दूर करने का प्रयास करें।

 

युद्ध के घोड़े जैसे हमेशा तैयार रहो : मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी
मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी म.सा. ने प्रवचन माला में कहा कि हमारे सिद्धि तप के तपस्वी युद्ध के घोड़े के जैसे हैं। जैसे युद्ध के घोड़े को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती युद्ध का बिगुल बजते ही अपनी जान की बाजी लगाकर भी सरपट दौड़ता है और विजय पाने के बाद ही थमता है और फिर आगे के लिए तैयार रहता है, वैसे ही चातुर्मास में सिद्धि तप का भाव रखने वाले सिद्धि तप की शुरुआत की जानकारी मिलते ही उस युद्ध के घोड़े के जैसे स्वयं आगे आकर सिद्धि तप का पच्चखाण लेते हैं और अपने विजय मार्ग पर आगे बढ़ते हैं।

 

मुनिश्री ने कहा कि घोड़े चार प्रकार के होते हैं। पहला युद्ध का घोड़ा जिसे कुछ कहना और समझाना नहीं पड़ता युद्ध का बिगुल बजते ही वह सरपट दौड़ना चालू कर देता है। दूसरा रेस का घोड़ा जिसे चाबुक दिखाना पड़ता है फिर वह सरपट दौड़ लगाता है। तीसरा सरकस का घोड़ा जिसे रिंग मास्टर के द्वारा ट्रेंड करना पड़ता है बहुत तैयार करना पड़ता है तब वह करतब दिखाता है और चौथा शादी विवाह का घोड़ा जो ढोल बजने पर ही और ढोल बजने तक ही नाचता है और ढोल बंद होने पर खड़ा हो जाता है। आपको युद्ध के घोड़े के जैसे तैयार होना है जिसे पता होता है कि उसे क्या करना है।

Author Desk

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